कभी यूँ भी तो हो ...............

on Thursday, September 16, 2010

कभी यूँ भी तो हो
दरिया का साहिल हो
पूरे चाँद की रात हो
और तुम आओ



कभी यूँ भी तो हो
परियों की महफ़िल हो
कोई तुम्हारी बात हो
और तुम आओ



कभी यूँ भी तो हो
ये नर्म मुलायम ठंडी हवायें
जब घर से तुम्हारे गुज़रें
तुम्हारी ख़ुश्बू चुरायें
मेरे घर ले आयें



कभी यूँ भी तो हो
सूनी हर मंज़िल हो
कोई न मेरे साथ हो
और तुम आओ



कभी यूँ भी तो हो
ये बादल ऐसा टूट के बरसे
मेरे दिल की तरह मिलने को
तुम्हारा दिल भी तरसे
तुम निकलो घर से



कभी यूँ भी तो हो
तनहाई हो, दिल हो
बूँदें हो, बरसात हो

और तुम आओ

3 comments:

Neeraj Rohilla said...

बेहतरीन, बहुत खूब.

वीना श्रीवास्तव said...

कभी यूँ भी तो हो
तनहाई हो, दिल हो
बूँदें हो, बरसात हो
और तुम आओ

बहुत अच्छी...

हमेशा ही ऐसा हो
आप लिखते रहें
लोग पढ़ते रहें

vandana gupta said...

ओह ……………………बहुत ही खूबसूरत भाव्………………।कभी यूँ भी तो हो………………क्या बात है।

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